There are times, when we are all frustrated that the world is not addressing the pressing environmental and social concerns that we are seeing, feeling and reading about. It can feel very lonely and bewildering. ‘How come everyone isn’t up in arms?’ ‘What on earth we each, together and independently, do?’ That said, sustainability and the areas of good growth …
Women For People And Planet Series: Meenu Bagla
Meet Meenu Bagla—the marketing maverick willing to break the mould with her passion and purpose. A leader who climbed the corporate ladder, shattering biases with her authenticity and resilient mentality. Her relentless drive to learn from everyone, be it a 12-year-old or an octogenarian, is what keeps her grounded and inspired. Xynteo’s Eleanor Besley-Gould and Emily Barrett sat down with …
Carbon Labelling, A Powerful Tool For Decarbonisation
Build Ahead has investigated urban housing challenges in India, explored the carbon emissions associated with the built environment, and proposed a framework for carbon labelling of construction materials. Our research shows that by 2047, the majority of India’s population is expected to live in urban centres, necessitating large volumes of new construction. With the built environment contributing close to 39% …
Decarbonising Heavy Industry: A Critical Path To Sustainable Economic Growth
As the world grapples with the urgent need to address climate change, the decarbonisation of heavy industry has emerged as a critical challenge and opportunity. In fact, sectors such as steel, cement, and chemicals—which contribute significantly to global emissions—can transition to a low-carbon future while maintaining economic growth. Heavy industry accounts for 25% of global CO2 emissions, with steel, cement, …
Your Competitors Might Just Be Your Best Friends In The Fight Against Climate Change
In a business world urgently focused on sustainability, organisations are discovering the limits of their ability to create meaningful progress alone. More than ever, senior leaders need to develop the vision, will, and skill to create radical collaborations – they need to start joining forces with their competitors. The last decade has seen a profusion of business strategy and marketing …
Beyond First-Mover Advantage: Unleashing The Power Of Collaborative Innovation
From the Wright brothers taking flight to Google revolutionising the internet, society has always been captivated by stories of pioneering “firsts”. In the business world, being a first mover has long been viewed as a powerful competitive advantage. In the realm of Environmental, Social, and Governance (ESG) initiatives, companies that adopted sustainable practices early often gained a competitive edge, benefiting …
Decarbonisation of Heavy Industry: A Good Growth Imperative
Heavy industry, which includes steel, cement, chemicals, oil and gas, automotive, shipbuilding, mining and metallurgy, machinery and industrial equipment, etc., forms the backbone of the modern economy. While heavy industry drives economic growth worldwide, it is also one of the major sources of GHG emissions. The path forward demands a delicate balance, maintaining industrial growth while dramatically reducing carbon footprint. …
क्लीन हाइड्रोजन: सरकार, उद्योग, स्टार्टअप्स और शिक्षा जगत के लिए अवसर
This article first appeared in YourStory Hindi on 16 July 2024 भारत में क्लीन हाइड्रोजन अनुसंधान और तकनीकी विकास में सबसे बड़ा योगदान सरकारी एजेंसियों द्वारा वित्तपोषित अनुसंधान केंद्रों का है. इनमें इलेक्ट्रोलाइजर मेम्ब्रेन सामग्री और बेहतर औद्योगिक बर्नर शामिल हैं. भारत ने वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जो दुनिया के किसी भी देश द्वारा निर्धारित सबसे बड़े लक्ष्यों में से एक है. यह प्रयास डीकार्बनाइजेशन टेक्नोलॉजी में भारत की सक्रिय भागीदारी और स्वच्छ ऊर्जा के लिए देश के दृढ़ संकल्प को दिखाता है. भारत की भौगोलिक स्थिति रिन्यूएबल एनर्जी के लिए अनुकूल है और यहां हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी के कई विशेषज्ञ हैं. इसलिए इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. देश में इलेक्ट्रोकेमिस्ट्री, एनर्जी सेल, इलेक्ट्रोलाइजर, रिन्यूएबल एनर्जी, बॉयो टेक्नोलॉजी और क्लीन हाइड्रोजन में विशेषज्ञता रखने वाले कई बड़े संस्थान और संगठन हैं. शोध से पता चला है कि इनोवेटर्स का एक छोटा समूह क्लीन हाइड्रोजन वैल्यू चेन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है. उनकी कोशिशों के परिणाम भी दिख रहे हैं. अक्सर, उनकी खोजें अंतर्राष्ट्रीय स्तर की होती हैं, जिससे उन्हें वैश्विक पहचान मिलती है. इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति करने वाले उद्यमों में आमतौर पर ऐसी संस्थापक समूह टीमें होती हैं जिनमें अपने सेक्टर की खास विशेषज्ञता, मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम की पहचान करने की क्षमता एवं लगातार काम करने की लगन, विश्वस्तरीय प्रोडक्ट कंपनी बनाने के लिए मजबूत प्रोत्साहन, और विश्वस्तरीय समाधान विकसित करने के लिए किफायती इनोवेशन की संस्कृति का मिश्रण होता है. भारत में क्लीन हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी का विकास अभी कम हुआ है, जिससे इस क्षेत्र में विकास और निवेश के बड़े अवसर हैं. अक्सर, वैल्यू चेन के किसी भाग के लिए विश्वसनीय सॉल्यूशन देने वाले एक या दो स्टार्ट-अप ही होते हैं, जिससे इनोवेशन की गति धीमी हो जाती है. परिस्थितियों में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है. कुछ शैक्षणिक संस्थान खास सेक्टर्स पर आधारित इंडस्ट्री और अकादमिक संस्थाओं का संघ बनाकर इंडस्ट्री के साथ सहयोग कर रहे हैं. तेलंगाना जैसे राज्यों ने भी इंडस्ट्री और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए रिसर्च और इनोवेशन सर्किल स्थापित किए हैं. कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि युवा शोधकर्ता अपने विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में बिजनेस वेंचर शुरू करने की संभावना तलाश रहे हैं. बड़े भारतीय स्टार्ट-अप क्षेत्र में काम करने वाली वेंचर कैपिटल कंपनियों ने भी क्लीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में कदम रखा है. इनमें से दो कंपनियों को क्लीन हाइड्रोजन उत्पादन तकनीक के लिए अब तक वित्तीय सहायता मिली है. राज्य और केंद्र सरकारें हाइड्रोजन वैल्यू चेन में तकनीकी विकास और कमर्शियल पायलट परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता देने के लिए हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर की अवधारणा पर काम कर रही हैं. इसके अलावा, क्लीन एनर्जी सेक्टर में विस्तार करने की इच्छुक प्रोसेस टेक्नोलॉजी कंपनियां भी व्यावसायिक उपयोगिता वाली तकनीक की तलाश कर रही हैं. हमारा मानना है कि क्लीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के इच्छुक भागीदारों को इन शुरुआती विकासों पर काम करना चाहिए और एक ऐसा इकोसिस्टम बनाना चाहिए जो क्लीन हाइड्रोजन वैल्यू चेन में सस्ते, विश्वसनीय और स्केलेबल सॉल्यूशंस को व्यावसायिक रूप से सफल बना सके. भारत में क्लीन हाइड्रोजन के विकास में तेजी लाने के लिए प्रमुख हितधारकों द्वारा उठाए गए कदम स्टार्ट-अप्स, निवेशकों, इंडस्ट्री, अनुसंधान संस्थानों और घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय इनोवेशन हब्स के साथ हमारे जुड़ाव और हमारी व्यापक पहुंच की मदद से, हमने क्लीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम को प्रेरित करने के लिए प्रमुख चुनौतियों एवं बेहद जरूरी हस्तक्षेपों की पहचान की है. शोध से लेकर कारोबारी उपक्रम भारत में, क्लीन हाइड्रोजन अनुसंधान में प्रमुख तकनीकी प्रगति में मुख्य योगदान उन प्रीमियर इंस्टीट्यूशन रिसर्च सेंटर्स का है जिन्हें सरकारी एजेंसियों से फंडिंग मिलती है. इनमें इलेक्ट्रोलाइजर मेम्ब्रेन सामग्री और बेहतर औद्योगिक बर्नर जैसे क्षेत्रों में विकास शामिल हैं. हालांकि, इन शोधों को व्यावसायिक उद्यमों में बदलने में अपर्याप्त संस्थागत समर्थन, बाजार में कमजोर स्वीकृति और शोधकर्ताओं में प्रेरणा की कमी जैसी बाधाएं हैं. इस अंतर को कम करने के लिए ऐसे बाजार-आधारित शोध कार्यक्रमों की जरूरत है जो शोधकर्ताओं को कारोबार शुरू करने या कंपनियों को अपनी तकनीक का लाइसेंस देने के लिए प्रोत्साहित करें. इससे ऊर्जा बाजार की जरूरतों के साथ तालमेल बनेगा. इस सेक्टर में विस्तार करने वाली कंपनियों के लिए क्लीन हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी के लाइसेंस के लिए अलग मैकेनिज्म बनाना जरूरी है. प्रोडक्ट डेवलपमेंट क्लीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में नए प्रोडक्ट विकसित करने वाले इनोवेटर्स जोकि शुरुआती चरण की कंपनियों का हिस्सा हैं, को अपने प्रोडक्ट्स विकसित करने और उन्हें मान्यता दिलाने के लिए जरूरी रिस्क कैपिटल में कमी का सामना करना पड़ता है. हालांकि निवेशक क्लीन हाइड्रोजन स्टार्ट-अप में निवेश करने में रुचि ले रहे हैं, पर यह निवेश न्यूनतम व्यवहार्य उत्पादों के शुरुआती चरण के प्रोटोटाइप्स के विकास को सहयोग करने के लिए काफी नहीं है. इन उपक्रमों को शुरुआती चरण में अनुदान या इक्विटी/प्री-सीड कैपिटल की सख्त जरूरत है ताकि न्यूनतम व्यवहार्य उत्पादों को विकसित किया जा सके. व्या वसायीकरण एवं उपस्थिति का विस्तार करना क्लीन हाइड्रोजन में प्रोडक्ट डेवलपमेंट का काम केमेस्ट्री, मटेरियल साइंस और बॉयो टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है. हालांकि, ये टीमें अक्सर न्यूनतम व्यवहार्य उत्पाद (MVP) बनने के बाद उनका तेजी से प्रसार और व्यावसायीकरण करने में विफल रहती हैं. उन्हें तेजी से विकास करने की कुशलता, बाजार में प्रोडक्ट उतारने की रणनीति बनाने और रणनीतिक साझेदारों की पहचान करने में व्यावसायिक सलाह की बहुत जरूरत होती है ताकि उनके उत्पादों का व्यावसायीकरण हो सके. जिन संस्थाओं ने अपने न्यूनतम व्यवहार्य उत्पाद (मिनिमम वाएबल प्रोडक्ट्स यानी MVP) विकसित किए हैं, उन्हें लगता है कि इन उत्पादों को औद्योगिक स्तर पर बदलने के लिए अलग कौशल की जरूरत है. इस स्थिति में इंडस्ट्री विशेषज्ञ उन्हें मार्गदर्शन दे सकते हैं. यह मार्गदर्शन खासकर उत्पादों को अन्य प्रणालियों के साथ जोड़ने और बड़े पैमाने पर तैनाती के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण है. हालांकि, किसी वन-टु-वन मैचिंग मैकेनिज्म के अभाव में अकादमिक संस्थाओं के बाहर टेक्नोलॉजी डेवलपर्स और उचित टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स के बीच संवाद बहुत सीमित है. व्यावसायिक इस्तेमाल यह भी संभव है कि भारत और ग्लोबल बाजार के लिए क्लीन हाइड्रोजन सॉल्यूशन विकसित करने वाले स्टार्टअप्स अभी अपने पहले ग्राहक को प्रोडक्ट सप्लाई करने की स्थिति में न हों. इन संस्थाओं को भारतीय और वैश्विक बाजार को गहराई से समझना होगा, लक्षित ग्राहकों की पहचान करनी होगी और अपने उत्पाद को लोकप्रिय बनाने की रणनीतियां बनानी होंगी. इसके लिए उन्हें उत्पादकों, उत्पाद वितरकों, फाइनेंसर्स, बीमाकर्ताओं के साथ साझेदारी करनी होगी, अपने उत्पादों को प्रमाणित और मान्य कराना होगा, बैलेंस ऑफ प्लांट (BOP) उपकरणों के लिए एक विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला विकसित करनी होगी, उत्पाद वारंटी और बिक्री के बाद सहायता प्रदान करनी होगी और नियामक प्रणाली को समझना होगा. घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यावसायीकरण की रणनीति विकसित करने में विशेषज्ञों से सहायता लेना बेहद जरूरी है. इससे प्रोडक्ट के कम से कम 12 से 24 महीने में बाजार में लाने के काम में तेजी लाई जा सकती है. इसलिए, इस इकोसिस्टम के सभी प्रमुख खिलाड़ियों को नई खोज करने वालों को मजबूत, व्यावसायिक रूप से तैयार क्लीन हाइड्रोजन तकनीकें विकसित करने और संभावित बाजारों को खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी. उत्पादों का व्यावसायीकरण शुरू करने और उन्हें बाजार में पहुंचाने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए इंडस्ट्री, स्टार्ट-अप, निवेशकों, शिक्षाविदों और अन्य हितधारकों के बीच एक मजबूत और भरोसेमंद नेटवर्क बनाना बहुत जरूरी है.
Heavy Industry’s Climate Challenge: Innovating For A Low-Carbon Future In India
This article originally appeared in Construction Week on 17 July 2024 Heavy industry, which includes steel, cement, chemicals, oil and gas, automotive, shipbuilding, mining and metallurgy, machinery and industrial equipment, etc., forms the backbone of the modern economy. While heavy industry drives economic growth worldwide, it is also one of the major sources of GHG emissions. The path forward demands a delicate …
How European FMCG Companies Are Embracing Electric Mobility In Their Supply Chain
In the evolving landscape of European procurement and supply chain logistics, electric mobility is revolutionising how consumer goods companies execute last-mile delivery of their products. Once considered a niche alternative to traditional transportation, electric cargo vehicles are now central to the strategic planning of large companies and offer a range of benefits from cost savings to sustainability. Here is a …